जिसने कभी नही पाया,
ममता का गहरा सागर।
सूनी होगी चादर,
सूखी सी होगी उसकी गागर।।
मधुवन में मधुमास नही,
पतझड़ उसको मिलते होंगे।
उसके जीवन में खुशियों के,
फूल कहाँ खिलते होंगे।।
ममता की जब छाँव नही,
अमृत भी गरल घने होंगे।
आशाएँ सब सूनी होंगी,
पथ सब विरल बने होंगे।।
कृष्ण-कन्हैया को द्वापर में,
मिला यशोदा का आँचल।
कलयुग में क्या मिल पायेगा,
ऐसी माता का आँचल।।
ममता का गहरा सागर।
सूनी होगी चादर,
सूखी सी होगी उसकी गागर।।
मधुवन में मधुमास नही,
पतझड़ उसको मिलते होंगे।
उसके जीवन में खुशियों के,
फूल कहाँ खिलते होंगे।।
ममता की जब छाँव नही,
अमृत भी गरल घने होंगे।
आशाएँ सब सूनी होंगी,
पथ सब विरल बने होंगे।।
कृष्ण-कन्हैया को द्वापर में,
मिला यशोदा का आँचल।
कलयुग में क्या मिल पायेगा,
ऐसी माता का आँचल।।
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