“पति “ – लगता है आज बाग़
में फूल नहीं खिला
इतनी देर हो
गयी काम से आये हुए अभी तक खाना नहीं मिला “
“पत्नी ने जवाब देते हुए कहाँ “
“आज मैंने सारे कपड़े धोये थे
जो तुमने कल पानी में भिजोये थे “
“पति कहता है “
“अच्छा अब ताना मत दे कपड़े भिजोने का
उठा के मुँह पर तेरे डाल दूंगा
पानी भिगोने का “
“ पत्नी घुस्से में “
अजी हाथ तुम लगा के दिखाओ बोल दूंगी अपने भाई से
ले आयेगा चाकू-छुरी हाथ कटवा देगा किसी कसाई से “
“पति को और घुस्सा आया बेचारा भूक से तड़पते हुए कहता है “
“तेरी यही बचकानी हरक़त से मै बहुत डरता हूँ
नींद नहीं आती रातो को इसलिए रात भर जगता हूँ “
“पत्नी भावुक होकर “
अच्छा जी अब चुप भी करो
रोटी कैसे बनती घर में राशन तो भरो “
“पति माथा पकड़ बेठ जाता है और कहता है “
“आरी ओ अक्ल की दुश्मन जब नहीं था कुछ पकाने को
सुबह ही बता देती ले आता कुछ बहार से खाने को “
“ पत्नी हँसते हुए”
“अजी कैसे बताती आपको आप निकल गए थे जल्दी
सुबह से कुछ नहीं खाया मैंने भी पेट अपना भर रही थी खा –खाकर शकरकंदी “
“पति हार मानकर”
“चलो मै जा रहा हूँ सोने सुबह खा लूँगा बहार जाकर
कुछ नहीं मिलना अब और तुमसे दिमाग लड़ाकर “
“पत्नी घुस्से में फिर से “
“क्या करूँ अब तेरा समझ में नहीं आता जान तुम्हारा भी दिमाग खा – खाकर नहीं होना कल्याण “
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