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Sunday, 17 August 2014

जन्माष्टमी

श्रावण कृष्ण अष्टमीपर श्री कृष्ण जी के जन्म का उत्सव जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है । `(आ) कर्षणम् करोति इति ।', अर्थात्, आकर्षित करनेवाला । `कर्षति आकर्षति इति कृष्ण: ।' यानी, जो खींचता है, आकर्षित कर लेता है, वह श्रीकृष्ण । लौकिक अर्थसे श्रीकृष्ण यानी काला । कृष्णविवर (Blackhole) में प्रकाश है, इसका शोध आधुनिक विज्ञानने अब किया है ! कृष्णविवर ग्रह, तारे इत्यादि सबको अपनेमें खींचकर नष्ट कर देता है । उसी प्रकार श्रीकृष्ण सबको अपनी ओर आकर्षित कर सबके मन, बुद्धि व अहंका नाश करते हैं ।




आजकल `दहीकाला' प्रथाके निमित्त बलपूर्वक चंदा वसूली, अश्लील नृत्य, महिलाओंसे छेडछाड, महिला गोविंदा (पुरुषकी भांति महिलाएं भी अपनी टोली बनाकर मटकी फोडती हैं । इससे लाभ तो कुछ नहीं होता, केवल व्यभिचार बढता है ।) आदि अनाचार खुलेआम होते हैं । इन अनाचारोंके कारण उत्सवकी पवित्रता भंग होती है । देवताके तत्त्वका लाभ नहीं होता; वरन् उनकी अवकृपाके पात्र बनते हैं । इन अनाचारोंको रोकनेसे ही उत्सवकी पवित्रता बनी रहेगी और उत्सवका खरा लाभ मिलेगा । समष्टि स्तरपर ऐसा करना भगवान श्रीकृष्णकी उपासना ही है ।

गोपीचंदन: `गोप्य: नाम विष्णुपत्न्य: तासां चन्दनं आल्हादकम् ।' अर्थात्, गोपीचंदन वह है, जो गोपियोंको यानी श्रीकृष्णकी स्त्रियोंको आनंद देता है । इसे `विष्णुचंदन' भी कहते हैं । यह द्वारकाके भागमें पाई जानेवाली एक विशेष प्रकारकी सफेद मिट्टी है । ग्रंथोंमें कहा गया है कि, गंगामें स्नान करनेसे जैसे पाप धुल जात हैं, उसी प्रकार गोपिचंदनका लेप लगानेसे सर्व पाप नष्ट होते हैं । विष्णु गायत्रीका उच्चारण करते हुए मस्तकपर गोपिचंदन लगानेकी प्रथा है ।

‘हरे राम हरे राम.... हरे हरे ।’







`पूजाके दौरान देवताओंको जो वस्तु अर्पित की जाती है, वह वस्तु उन देवताओंको प्रिय है, ऐसा बालबोध भाषामें बताया जाता है, उदा. गणपतिको लाल फूल, शिवको बेल व विष्णुको तुलसी इत्यादि । उसके पश्चात् उस वस्तुके प्रिय होनेके संदर्भमें कथा सुनाई जाती हैण। प्रत्यक्षमें शिव, विष्णु, गणपति जैसे उच्च देवताओंकी कोई पसंद-नापसंद नहीं होती । देवताको विशेष वस्तु अर्पित करनेका तात्पर्य आगे दिए अनुसार है ।
पूजाका एक उद्देश्य यह है कि, पूजी जानेवाली मूर्तिमें चैतन्य निर्माण हो व उसका उपयोग हमारी आध्यात्मिक उन्नतिके लिए हो । यह चैतन्य निर्माण करने हेतु देवताको जो विशेष वस्तु अर्पित की जाती है, उस वस्तुमें देवताओंके महालोकतक फैले हुए पवित्रक (उस देवताके सूक्ष्मातिसूक्ष्म कण) आकर्षित करनेकी क्षमता अन्य वस्तुओंकी अपेक्षा अधिक होती है । लाल फूलोंमें गणपतिके, बेलमें शिवके, तुलसीमें विष्णुके (श्रीकृष्णके) पवित्रक आकर्षित करनेकी क्षमता सर्वाधिक रहती है; इसी करण श्रीविष्णुको (श्रीकृष्णको) तुलसी अर्पित करते हैं । घरके सामने भी तुलसी वृंदावन होता है ।

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