( db ) Dixit & Brothers
By Rajanish Dixit.
Sunday, 17 August 2014
जन्माष्टमी
श्रावण कृष्ण अष्टमीपर श्री कृष्ण जी के जन्म का उत्सव जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है । `(आ) कर्षणम् करोति इति ।', अर्थात्, आकर्षित करनेवाला । `कर्षति आकर्षति इति कृष्ण: ।' यानी, जो खींचता है, आकर्षित कर लेता है, वह श्रीकृष्ण । लौकिक अर्थसे श्रीकृष्ण यानी काला । कृष्णविवर (Blackhole) में प्रकाश है, इसका शोध आधुनिक विज्ञानने अब किया है ! कृष्णविवर ग्रह, तारे इत्यादि सबको अपनेमें खींचकर नष्ट कर देता है । उसी प्रकार श्रीकृष्ण सबको अपनी ओर आकर्षित कर सबके मन, बुद्धि व अहंका नाश करते हैं ।
इस तिथिपर दिनभर उपवास कर रात्रि बारह बजे पालनेमें बालक श्रीकृष्णका जन्म मनाया जाता है व उसके उपरांत प्रसाद लेकर उपवास छोडते हैं अथवा अगले दिन प्रात: दहीकालाका प्रसाद लेकर उपवास छोडते हैं ।
विविध खाद्यपदार्थ, दही, दूध, मक्खन, इन सबको मिलाना अर्थात् `काला' । श्रीकृष्णने काजमंडलमें गायोंको चराते समय अपने व अपने साथियोंके कलेवेको एकत्रित कर उन खाद्यपदार्थोंको मिलाया व सबके साथ मिलकर ग्रहण किया । इस कथाके अनुसार गोकुलाष्टमीके दूसरे दिन `काला' बनाने व दहीमटकी फोडनेकी प्रथा निर्माण हो गई ।
जन्माष्टमीके दिन श्रीकृष्णतत्त्व अन्य दिनोंकी अपेक्षा १००० गुणा कार्यरत होता है । इसलिए इस तिथिपर `ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।' का जप तथा श्रीकृष्णकी भावपूर्ण उपासनासे श्रीकृष्णतत्त्वका अधिकाधिक लाभ मिलता है ।
आजकल `दहीकाला' प्रथाके निमित्त बलपूर्वक चंदा वसूली, अश्लील नृत्य, महिलाओंसे छेडछाड, महिला गोविंदा (पुरुषकी भांति महिलाएं भी अपनी टोली बनाकर मटकी फोडती हैं । इससे लाभ तो कुछ नहीं होता, केवल व्यभिचार बढता है ।) आदि अनाचार खुलेआम होते हैं । इन अनाचारोंके कारण उत्सवकी पवित्रता भंग होती है । देवताके तत्त्वका लाभ नहीं होता; वरन् उनकी अवकृपाके पात्र बनते हैं । इन अनाचारोंको रोकनेसे ही उत्सवकी पवित्रता बनी रहेगी और उत्सवका खरा लाभ मिलेगा । समष्टि स्तरपर ऐसा करना भगवान श्रीकृष्णकी उपासना ही है ।
गोपीचंदन:
`गोप्य: नाम विष्णुपत्न्य: तासां चन्दनं आल्हादकम् ।' अर्थात्, गोपीचंदन वह है, जो गोपियोंको यानी श्रीकृष्णकी स्त्रियोंको आनंद देता है । इसे `विष्णुचंदन' भी कहते हैं । यह द्वारकाके भागमें पाई जानेवाली एक विशेष प्रकारकी सफेद मिट्टी है । ग्रंथोंमें कहा गया है कि, गंगामें स्नान करनेसे जैसे पाप धुल जात हैं, उसी प्रकार गोपिचंदनका लेप लगानेसे सर्व पाप नष्ट होते हैं । विष्णु गायत्रीका उच्चारण करते हुए मस्तकपर गोपिचंदन लगानेकी प्रथा है ।
‘हरे राम हरे राम.... हरे हरे ।’
`कलिसंतरणोपनिषद् श्रीकृष्णयजुर्वेदांतर्गत है व इसे `हरिनामोपनिषद्' भी कहते हैं । द्वापरयुगके अंतमें ब्रह्मदेवने यह उपनिषद् नारदको सुनाया । इसका सारांश यह है कि, नारायणके नाम मात्रसे कलिदोष नष्ट होते हैं । यह नाम निम्न सोलह शब्दोंसे बना है -
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।।
यह सोलह शब्द जीवके जन्मसे लेकर मृत्युतककी सोलह कलाओंसे (अवस्थाओंसे) संबंधित हैं एवं यह मंत्र आत्माके चारों ओर मायाके आवरणका, अर्थात् जीवके आवरणका नाश करता है । कुछ कृष्णसंप्रदायी मंत्रके दूसरे चरणका उच्चारण प्रथम करते हैं व तत्पश्चात् पहले चरणका करते हैं ।'
नामजप:
अनिष्ट शक्तियोंका निवारण करनेवाले उच्च देवताओंमेंसे एक हैं श्रीकृष्ण । श्रीकृष्णके नामजपसे अनिष्ट शक्तियोंके कष्टसे मुक्ति पा सकते हैं ।
श्रीगोपालकवचका पाठ:
अनिष्ट शक्तिके कष्टसे पीडित लोगोंके लिए नामजपके साथ ही `श्रीगोपालकवच' का नित्य पाठ उपयुक्त है ।
श्रीकृष्णको तुलसी क्यों अर्पित करते हैं ?
`पूजाके दौरान देवताओंको जो वस्तु अर्पित की जाती है, वह वस्तु उन देवताओंको प्रिय है, ऐसा बालबोध भाषामें बताया जाता है, उदा. गणपतिको लाल फूल, शिवको बेल व विष्णुको तुलसी इत्यादि । उसके पश्चात् उस वस्तुके प्रिय होनेके संदर्भमें कथा सुनाई जाती हैण। प्रत्यक्षमें शिव, विष्णु, गणपति जैसे उच्च देवताओंकी कोई पसंद-नापसंद नहीं होती । देवताको विशेष वस्तु अर्पित करनेका तात्पर्य आगे दिए अनुसार है ।
पूजाका एक उद्देश्य यह है कि, पूजी जानेवाली मूर्तिमें चैतन्य निर्माण हो व उसका उपयोग हमारी आध्यात्मिक उन्नतिके लिए हो । यह चैतन्य निर्माण करने हेतु देवताको जो विशेष वस्तु अर्पित की जाती है, उस वस्तुमें देवताओंके महालोकतक फैले हुए पवित्रक (उस देवताके सूक्ष्मातिसूक्ष्म कण) आकर्षित करनेकी क्षमता अन्य वस्तुओंकी अपेक्षा अधिक होती है । लाल फूलोंमें गणपतिके, बेलमें शिवके, तुलसीमें विष्णुके (श्रीकृष्णके) पवित्रक आकर्षित करनेकी क्षमता सर्वाधिक रहती है; इसी करण श्रीविष्णुको (श्रीकृष्णको) तुलसी अर्पित करते हैं । घरके सामने भी तुलसी वृंदावन होता है ।
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment